Shiva Panchakshari Mantra Lyrics – Meaning and Benefits

Shiva Panchakshari Mantra – भगवान शिव हिंदू धर्म के प्रमुख देवता हैं। ब्रह्मा जी भगवान विष्णु तथा भगवान शिव को त्रिमूर्ति देव कहा जाता है। इन तीनों देवताओं का अपना अलग-अलग स्थान, कार्य और महत्व है।

भगवान ब्रह्मा सृष्टि रचयिता माने जाते हैं जबकि भगवान विष्णु इस जगत के पालनहार हैं तथा भगवान शिव को सृष्टि चक्र का संहारकर माना जाता है। शिव का अर्थ शून्य माना गया है। 

अर्थात उन्हीं से इस जगत की उत्पत्ति हुई है तथा उन्हीं द्वारा ही सृष्टि का विनाश भी होना है। वह विनाश और सृजन दोनों के देवता माने जाते हैं। इसलिए भगवान शिव का महत्व बढ़ जाता है।

पुराणों में भगवान शिव की प्रकृति बहुत उदार बताई गई है। वह आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं तथा राक्षसों को भी वरदान दे देते हैं। इसलिए उनकी छवि कृपालु देवता की है।

सच्ची श्रद्धा एवं भक्ति से भगवान शिव की स्तुति करने पर वह जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव की आराधना स्तुति के लिए कई मंत्र बताए गए हैं लेकिन इन सभी मंत्रों में भगवान शिव का पंचाक्षर मंत्र ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है।

भगवान शिव का पंचाक्षर मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। इसका जाप करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती है और बाधा पीड़ा तथा व्याधि से मुक्ति मिलती है।

चलिए आज इसलिए के जरिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र, उसकी उत्पत्ति, अर्थ, महत्व तथा लाभ के बारे में जानते हैं।

Panchakshari Mantra Lyrics and Meaning – शिव पंचाक्षरी मंत्र एवं उसका अर्थ

शिव पंचाक्षरी मंत्र पांच अक्षरों से मिलकर बना है। यह पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय हैं। हालांकि मूल पंचाक्षरी मंत्र केवल “नमः शिवाय” को ही माना जाता है। लेकिन इस मंत्र का जाप करते समय उच्चारण के पूर्व ‘‘ का उच्चारण जरूर किया जाता है।

प्रायः ॐ नमः शिवाय को ही पंचाक्षरी मंत्र मान लिया जाता है। इसका अर्थ है मैं भगवान शिव को नमन करता हूं!” 

भले ही इस पंचाक्षरी मंत्र का उच्चारण और अर्थ दोनों सरल व साधारण है लेकिन इसकी महिमा उतनी ही गूढ़ और विशेष है। यह पंचाक्षरी मंत्र अत्यंत प्रभावशाली शक्तिशाली माना जाता है।

क्योंकि इस मंत्र की उत्पत्ति भगवान शिव द्वारा ही मानी जाती है। इसलिए इस मंत्र का महत्व अन्य मंत्रो की अपेक्षा अधिक है।

Origin of Shiva Panchakshari Mantra – शिव पंचाक्षरी मंत्र की उत्पत्ति

कुछ पौराणिक अवधारणा के मुताबिक भगवान शिव का प्राकट्य पांच मुखों के साथ हुआ था। यही पांचो मुख उनके पांच स्वरूप थे जिनका वर्णन शिव पंचाक्षरी स्रोत में मिलता है।

इस ब्रह्मांड की आदिम ध्वनि मानी जाती है। अर्थात इसकी उत्पत्ति ब्रह्मांड की सर्वप्रथम ध्वनि के रूप में हुई थी। जबकि अन्य पांच अक्षर न म शि वा य है जिनकी उत्पत्ति भगवान के पांच मुखो द्वारा मानी जाती है। 

यह पांचो अक्षर भगवान शिव के पांच स्वरूप हैं। जिनका उल्लेख शिव भक्ति गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिवपंचाक्षरस्तोत्रम् में मिलता है।

गुरु आदि शंकराचार्य ने शिव पंचाक्षरी स्रोत की रचना करते हुए भगवान शिव जी के इन्हीं पांच स्वरूप न म शि वा की वंदना की है। 

भगवान शिव के प्रारंभिक स्वरूप द्वारा इसकी उत्पत्ति होने के कारण पंचाक्षरी मंत्र को सृष्टि का पहला मंत्र माना जाता है। इसलिए इस पंचाक्षरी शिव मंत्र को महामंत्र की संज्ञा भी दी गई है।

इसी मंत्र को आधार मानकर शंकराचार्य ने पांच श्लोक में भगवान शिव के इन पांचो स्वरूप की वंदना की है।

Panchakshari Mantra Benefits – शिव पंचाक्षरी मंत्र का महत्व एवं लाभ

शिव पंचाक्षरी मंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसमें इस ब्रह्मांड की सभी ध्वनियां समाहित हैं क्योंकि इस मंत्र का जाप ‘ॐ’ की महाध्वनि सहित किया जाता है।

इस मंत्र की महिमा बड़ी है कि वेद पुराण भी इस मंत्र को अचूक मानते हैं। आत्मा के अंतःकरण की शुद्धि के लिए इस मंत्र का जाप अत्यंत लाभदायक माना जाता है।

यह शिव पंचाक्षरी मंत्र सभी मनोरथ की सिद्धि करने वाला मंत्र है। इसका जाप करने से बाधा, भय, पीड़ा और दरिद्रता का नाश होता है।

इस महामंत्र का जाप करने से शारीरिक स्पंदन की गति बढ़ जाती है तथा शरीर में ऊर्जा शक्ति का संचार होता है। इस महा मंत्र की महा ध्वनि सुनने मात्र से ही मृत्यु भय का नाश होता है।

पंचाक्षरी मंत्र का रोजाना पाठ करने से शारीरिक व्याधि दूर होती है और जटिल से जटिल रोगों का प्रभाव खत्म हो जाता है। इस मंत्र का जाप करने से सभी इंद्रियां नियंत्रित रहती हैं।

इस मंत्र को शिववाक्य और शिवज्ञान कहा जाता है क्योंकि अंतःकरण में रोज इस मंत्र का ध्यान करने से मानसिक एवं आध्यात्मिक शांति मिलती है तथा लोभ और माया का बंधन टूट जाता है।

सच्ची श्रद्धा और समर्पण के साथ इस मंत्र का पाठ करने से आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है। व्यक्ति को मानसिक बल मिलता है तथा मन आनंदित रहता है।

इस मंत्र का निरंतर जाप करने से अंतःकरण की शुद्धि तो होती ही है साथ ही साथ आध्यात्मिक एवं आंतरिक चेतना का जागरण भी होता है। 

Method of Chanting Shiva Panchakshari Mantra – शिव पंचाक्षरी मंत्र जाप करने की विधि

शिव पंचाक्षरी मंत्र का जब कोई भी कर सकता है। लेकिन पंचाक्षरी मंत्र के जाप की शुरुआत सोमवार से ही करनी चाहिए क्योंकि सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है तथा यह मंत्र भी उन्हीं से संबंधित है।

इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप रोजाना सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में अथवा संध्या काल में सूर्यास्त बाद करना चाहिए। 

हर मासिक शिवरात्रि तथा महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। खासकर महाशिवरात्रि तथा शिवरात्रि की निशिता संध्याकाल में इस पंचाक्षरी मंत्र का जप अत्यंत लाभप्रद होता है।

रोजाना पंचाक्षरी मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। जाप की माला फेरने के लिए रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल करना चाहिए। क्योंकि रुद्राक्ष की माला भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है।

इस मंत्र का जाप करने के लिए मुख्य की दिशा उत्तर अथवा पूर्व की ओर रखनी चाहिए। अगर आप शिव पंचाक्षरी मंत्र का अचूक लाभ उठाना चाहते हैं तो आपको इस मंत्र के साथ-साथ आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव पंचाक्षरी स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए।

इस प्रकार जो भी उपासक बताए गए नियम एवं विधि का पालन करके भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का सच्ची श्रद्धा पूर्वक जाप करता है निश्चय ही वह इस पंचाक्षरी मंत्र के जाप का अचूक लाभ प्राप्त करता है।

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